गठबंधन की सरकार में टूट होना झारखंड का इतिहास, बाबूलाल के रुप में भाजपा ने कर ली है बुनियाद तैयार…

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रिपोर्ट- संजय वर्मा…

गठबंधन की सरकार में टूट होना झारखंड का इतिहास, बाबूलाल के रुप में भाजपा ने कर ली है बुनियाद तैयार…

रांचीः इन दिनों मीडिया से लेकर आमजनों के बीच ये चर्चा का विषय बना हुआ है कि, बाबूलाल मरांडी भाजपा में घर वापसी कर सकते हैं। झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री सह जेवीएम पार्टी सुप्रीमों सह विधायक राजधनवार, की चुप्पी भी इसी ओर इशारा कर रही है।

फाईल फोटो सन् 2000 की…

क्यों जा रहे हैं बाबूलाल मरांडी भाजपा में?

संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में झावीमो को अपने आशा के अनुरुप सीटें नहीं मिली, जिसके कारन बाबूलाल मरांडी थोड़े हताश हुए हैं। हताशा का दूसरा कारण पार्टी के शेष दो विधायकों का रुझान अन्य दलों की ओर होना है। वर्तमान में बाबूलाल मरांडी बिल्कूल अकेले खड़े दिख रहे हैं।

प्रदेश की जनता ने नहीं दिया बाबूलाल मरांडी का साथः

बाबूलाल की ये सोंच रही कि झारखंड के लोकल मुद्दों पर जाति धर्म से उपर उठ कर सबसे ज्यादा उनकी पार्टी ने ही सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करने का काम किया है, फिर वो चाहे गोड्डा में अडानी पावल लिमिटेड द्वारा जमीन अधिग्रहण का मामला हो या फिर चन्द्रपुरा-धनबाद रुट अग्नि प्रभावित बता कर बंद कर देने का मामला हो। ऐसे कई मुद्दे हैं, जिसे लेकर झावीमों ने आंदोलन खड़ा किया और सफलता भी मिली, लेकिन विधानसभा चुनाव परीणाम के नतीजों ने बाबूलाल मरांडी की उम्मीदों को तार-तार करके रख दिया। आंकडें बताते हैं कि अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने उनकी पार्टी के पक्ष में मतदान नही किया था, ऐसे में बाबूलाल मरांडी का हताश होना लाजमी है।

गठबंधन के दौरान झामुमो और कांग्रेस ने मील कर बाबूलाल मरांडी के भरोषे को तोड़ने का काम कियाः

विधानसभा चुनाव से पूर्व बाबूलाल मरांडी को गठबंधन में झामुमो से कम लेकिन कांग्रेस से ज्यादा उम्मीदें थी। बाबूलाल मरांडी की सोंच थी कि गठबंधन में उनकी पार्टी को कम से कम 15-20 सीटें जरुर मिलेगी, लेकिन ऐसा नही हुआ। दोनों ही पार्टियों ने झावीमों को मात्र 5-6 सीटें देने की बात कही, जो बाबूलाल मरांडी को मान्य नही था, इसके बाद ही बाबूलाल मरांडी ने सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारने का निर्णय लिया था। बाबूलाल मरांडी इस बात को लेकर दोनों ही पार्टियों से नाराज चल रहे थें।

भाजपा के शिर्ष नेतृत्व को प्रदेश स्तरीय नेताओं पर भरोषा नहीः

सूत्र बताते हैं कि विधानसभा चुनाव में आशा के विपरीत सीट मीलने से भाजपा का शिर्ष नेतृत्व प्रदेश स्तरीय नेताओं से काफी नाराज है। भाजपा शिर्ष नेतृत्व अब झारखंड में आदिवासी चेहरे पर दांव खेलना चाहती है, और वर्तमान में भाजपा की पहली पसंद बाबूलाल मरांडी हैं। हलांकि विधानसभा चुनाव से पूर्व भी बाबूलाल मरांडी की बातचीत पार्टी विलय के संबंध में हो चुकी थी, लेकिन बाबूलाल मरांडी विधानसभा चुनाव-2019 में दांव खेलना चाहते थें।

झारखंड में गठबंधन की कोई भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नही कर पायी हैः

झारखँड में पूर्ण बहुमत की रघुवर सरकार को छोड़ दें, तो यहां 2014 से पूर्व हमेशा गठबंधन की सरकार रही, और किसी भी पार्टी की गठबंधन वाली सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा नही किया। कभी कुर्सी को लेकर खिंचतान तो कभी मुद्दों पर विचार नही मिलने के कारन पूर्व की गठबंधन वाली सरकारें क्रमबद्ध तरीके से धारासाई होते रही है।

भाजपा को उम्मीद, झामुमों-कांग्रेस गंठबंधन मे टूट होकर रहेगीः

भाजपा के शिर्ष नेतृत्व को पूरा भरोषा है कि हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली गठबंधन की सरकार में टुट होकर रहेगी, जिसका फायदा भाजपा को जरुर मिलेगा। भाजपा के इस उम्मीद को और भी बल इसलिए भी मील रहा है, क्योंकि गठबंधन में मंत्री पद को लेकर अभी से ही खिंचतान शुरु हो चुकी है। दोनों ही पार्टी के विधायक क्षेत्रवार मंत्री पद की ईच्छा रखे हुए हैं, जो हेमंत सरकार के लिए संभव नहीं, इस रेस में दोनों ही पार्टियों के नवनिर्वाचित बुजूर्ग विधायकों की संख्या अधीक है। कई दौर की बैठकों के बाद भी अब तक दोनों ही दलों में मंत्री पद को लेकर सहमति नहीं बन पाई है। ऐसे में भाजपा को पुरी उम्मीद है कि दोनों ही दल के विधायक बिदकेंगे जरुर और इसका लाभ पुरी तरह भाजपा को मिलेगा।

प्रदेश स्तर पर नेतृत्वकर्ता के रुप में बाबूलाल मरांडी तैयारः

झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के लिए भी ये बेहतर मौका होगा, गठबंधन के दौरान धोखा देने वाले दोनों दलों को सबक सिखाने की। वर्तमान में बाबूलाल मरांडी के पास खोने के लिए कुछ नही है, लेकिन भाजपा शिर्ष नेतृत्व के उम्मीदों पर खरा उतर कर बाबूलाल मरांडी एक बार फिर सत्ता के शिर्ष पर आसीन हो सकते हैं। अगर गठबंधन में टूट नही भी होती है, तो भाजपा 5 सालों बाद बाबूलाल मरांडी को आगे कर, साथ छोड़ चुके गठबंधन के साथियों को एक बार फिर साथ लेकर आगे बढेगी और अपने मंसूबे पर कामयाबी हांसिल करेगी। इस मायने में बाबूलाल मरांडी के झावीमों का भाजपा में विलय घाटे का सौदा नहीं रहेगा, जो बाबूलाल मरांडी के अब तक की सोंच है।         

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