रिपोर्ट- सीता देवी…
बोकोरा(चास)- बिरसा कंपेनियन संस्था अपने स्नेह कार्यक्रम के द्वारा लगातार ग्रामीणों के आय में वृद्धि, उनके स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार करने के लिए प्रयासरत्त है। समय-समय पर बिरसा कंपेनियन कार्यालय में विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन कर बोकारो और चास के लोगों को प्रशिक्षण देने का काम कर रही है। इसी कड़ी में शनिवार को बिरसा कंपेनियन के कार्यालय में मशरुम उत्पादन का प्रशिक्षण ग्रामीणों को दिया गया।
प्रशिक्षक पूजा देवी और रेमका भगत ने ग्रामीणों को मशरुम उत्पादन का प्रशिक्षण दिया। प्रशिक्षक पूजा देवी ने मशरुम उत्पादन के फायदे, मशरुम के प्रकार, उत्पादन के तरीके, मशरुम उत्पादन से लाभ के बारे में विस्तार से ग्रामीणों को बताया। पूजा देवी ने बताया कि, मशरुम एक ऐसी फसल है जिसकी खेती कम लागत से कम जगह में ही की जा सकती है। देश के कई राज्यों के किसान मशरुम की खेती कर अच्छा मुनाफा कर रहे हैं। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में मशरुम की व्यापारिक स्तर पर खेती की जा रही है, और अब झारखंड में भी इस खेती की ओर छोटे किसान और रोजगार के इच्छुक ग्रामीणों का रुझान काफी तेजी से बढ़ा है।
वे मशरुम जिसका उत्पादन भारत में बड़े पैमाने पर किया जा रहा हैः
प्रशिक्षक पूजा देवी और रेमका भगत ने बताया कि भारत में मुख्य तौर पर 6 प्रकार के मशरुम की खेती की जा रही है।
- सफेद बटन मशरुम
- ऑएस्टर मशरुम
- सिटाके मशरुम
- पैरा मशरुम
- दूधिया मशरुम
- लायन्समेन मशरुम
मशरुम खाने के फायदेः
प्रशिक्षक द्वय ने बताया कि मशरुम खाने के बहुत सारे फायदे हैं। मशरुम को कम कैलोरी वाली सब्जी माना जाता है। इसे वजन कम करने वाला डाईट माना जाता है। मशरुम में कॉलिन नामक तत्व पाया जाता है, जो मेमोरी के लिए काफी लाभदायक है। इसके अलावे इम्यूनिटी बढ़ाने में, दिल की बीमारी में, खून की कमी होने पर, डायबिटीज बीमारी में और हड्डियों को मजबुत करने में और गर्भवती महिलाओं के लिए भी मशरुम खाना काफी फायदेमंद है।
मशरुम उत्पादक किसान, कमलेश कुमार ने भी प्रशिक्षणार्थियों को मशरुम खेती के लिए प्रोत्साहित कियाः
प्रशिक्षण कार्यक्रम में मशरुम उत्पादक किसान कमलेश कुमार ने भी प्रशिक्षणार्थियों को मशरुम उत्पादन के लाभ बताते हुए उन्हें मशरुम की खेती करने के लिए प्रेरित किया। कमलेश ने बताया कि, पहले मैं एक ही किस्म के मशरुम का उत्पादन करता था, लेकिन बाजार में बढ़ती मांग और इससे हो रहे आमदनी के देखते हुए मैं वर्तमान में पांच प्रकार के मशरुम का उत्पादन कर रहा हूं। कमलेश ने प्रशिक्षणार्थियों को ये आश्वासन दिया कि आप लोगों को मशरुम की खेती के लिए किसी भी प्रकार के सहायता की जरुरत पड़े तो मुझ से संपर्क कर सकते हैं।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रशिक्षणार्थियों के अलावा बिरसा कंपेनियम संस्था के कई सदस्य भी उपस्थित रहें।