लोकसभा में पेश वन संरक्षण संशोधन अधिनियम, वन अधिकार कानून एवं पेशा कानून को नगण्य करने के साथ-साथ वन निवासी समुदायों के अधिकारों पर कुठाराघात करने वाला.

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रिपोर्ट- ब्यूरो, ताजा खबर झारखँड…

रांचीः वन(संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023, जो लोक सभा में 29 अप्रैल 2023 को पेश किया गया था, उसे संयुक्त संसदीय समिति के द्वारा 3 मई 2023 को 15 दिनों के भीतर कुछ टिपणी और सुझावों के लिए आमजनों के लिए रखा गया था, जिसमें पाया गया कि, प्रस्तावित संशोधन वन संरक्षण अधिनियम 1980 को न केवल कमज़ोर करता है, बल्कि वन अधिकार कानून एवं पेसा कानून को अपूर्णीय क्षति पहुंचाते हुए इसके क्रियान्वयन को नगण्य करता है। यह संशोधन विधेयक वन निवासी समुदायों के अधिकारों पर कुठाराघात करता है।

वन उत्पादों पर निर्भर है वनों में रहने वाले समुदाय.
वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 के दुष्परिणामः
  • प्रस्तावित संशोधन विधेयक 2023 सीधे तौर पर वन अधिकार कानून 2006 द्वारा प्रदत्त वन अधिकारों को नज़र अंदाज़ करता है। ग्राम सभा एवं स्थानीय समुदायों जो वन संरक्षण एवं संवर्धन के अधिकारों की अवहेलना करता है।
  • यह विधेयक केंद्र सरकार को पूर्णरूपेण सक्षम प्राधिकारी बनाता है, जो यह तय कर सकेगा कि, वनों एवं वन भूमि को किस हद तक तथा किस रूप में इस्तेमाल करेगा। परिणामतः वनों को गैर वन उपयोग के लिए भी परिवर्तित कर सकेगा। इसका दुष्परिणाम यह होगा कि वनों के अंधाधुंध कटाई होगी एवं निजी कंपनियों के हाथों में आसानी से दे दिया जाएगा। इसके लिए स्थानीय समुदायों की सहमति की कोई आवश्यकता नहीं लेनी होगी, जो कि वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 के धारा 2 में स्थानीय समुदायों की सहमति को अनिवार्य करता है।
  • यह प्रस्तावित विधेयक केंद्र सरकार को व्यापक रूप से शक्तियां भी प्रदान करता है। इन शक्तियों का उपयोग करते हुए केन्द्र सरकार, राज्य सरकार, पैसा कानून, स्थानीय समुदायों एवं ग्राम सभा के शक्तियों को नकारता है और अधिसूचना या घोषणा के माध्यम से वनों को किसी भी व्यक्ति एवं निजी संस्थानों को हस्तांतरित कर सकता है।
  • ऐसे अचिन्हित,अवर्गीकृत और अन्य वन क्षेत्रों को जिसे 1996 में उच्चतम न्यायालय को गोदावार्मन केस के फैसले में वन का दर्जा दिया था, उसे इस प्रस्तावित विधेयक में इस विशाल वन भूमि की परिभाषा से बाहर करता है । अतः ग्राम सभा इसका स्वशासन, संरक्षण एवं संवर्धन नहीं कर सकेगा और वन भूमि का हस्तांतरण बिना किसी सहमति से आसानी से किया जाएगा।
  • यह प्रस्तावित संशोधन विधेयक वन भूमि को संरक्षण के दायरे से बाहर कर देता है और राष्ट्रीय राज मार्ग, रेल, सड़क निर्माण, अंतर्राष्ट्रीय सीमा के 100 किलोमीटर के दायरे, राष्ट्रीय उद्यान, प्रकृति पर्यटन स्थल, राष्ट्रीय सुरक्षा सम्बंधित परियोजना, राष्ट्रीय रक्षा एवं पारा मिलिट्री फोर्स तथा सार्वजनिक हित के लिए निर्माण कार्यों हेतू वन भूमि के उपयोग की छूट देता है। इसका सीधा-सीधा यह अर्थ निकलता है कि उपरोक्त परियोजनाओं से वन्य जीवों, पर्यावरण, एवं समुदायों के परिवेश को न केवल हानि पहुंचाएगा बल्कि उनको नष्ट भी करेगा।
  • यह गैर वन गतिविधियों को भी बढ़ावा देता है जो कि वनों का असंतुलित व्यवसायी करण को छूट देता है और खनिजों के खनन के लिए अन्य मानकों जैसे भूकंप को नज़र अंदाज़ करता है।

वनों में निवास करने वाले समुदायों का जन जीवन.
संयुक्त संसदीय समिति को जन संघर्ष समिति, नेतरहाट समेत कई जन संगठनों का सुझावः
  • केन्द्र सरकार को यह सुझाव दिया जाता है कि, वन अधिकार कानून 2006 द्वारा प्रदत्त वन अधिकारों को नज़र अंदाज़ न किया जाए और ग्राम सभा एवं स्थानीय समुदायों के अधिकारों को बरक़रार रखा जाए।
  • मूल वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 के धारा 2 में स्थानीय समुदायों की सहमति को अनिवार्य करते हुए प्रस्तावित संशोधन विधेयक के धारा 4 के तहत भी अनिवार्य किया जाए।
  • अचिन्हित, अवर्गीकृत और अन्य वन क्षेत्रों को जिसे 1996 में उच्चतम न्यायालय को गोदावार्मन केस के फैसले में वन को परिभाषित किया गया इसे प्रस्तावित संशोधन विधेयक में भी लाया जाए।
  • प्रस्तावित वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 को लाने के बजाय वन अधिकार कानून 2006 को धरातल पर सख्ती से लागू किया जाए।

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